Wednesday 25 May 2011

नैनीताल के अखंड सौन्दर्य में डूबा अस्तित्व

सन्नाटे में  थोड़ी  ठण्ड घुली हुई  थी  . उसमे  नुकीली नाक और तरकश सी खिंची आँख वाले सुन्दर और सरल लोग घूमते दिख रहे थे .अडिग पहाड़ निर्दोष   ताल के आस पास  ऐसे खड़े थे मानो कोई प्रेमी संकल्प लेकर खड़ा है की प्रेमिका की प्रतीक्षा में उसकी देहरी पर ही ज़िन्दगी गुज़ार देगा.  बादल पहाड़ की चोटियों को उसके  संकल्प से डिगाने पर आमादा थे और पूरा जोर लगा रहे थे की इन पहाड़ों को अपने साथ उड़ा कर ले जाएँ.   हवा की सरगोशियां आत्मा तक को सुकून पहुंचा रही थी . पूरी प्रकृति अपनी ही सुन्दरता पर मोहित होकर हतप्रभ खड़ी थी. घुमावदार रास्ते सुरीले रागों की तरह आमंत्रित कर रहे थे और उन पर चलने का आनंद किसी गीत को रूह से महसूस करने से कम न था.चट्टानों पर भी बहुत छोटे सफ़ेद फूल खिले हुए थे उनके बीच में एक जामुन रंग की बिंदी थी.  फूलों के इतने चटख रंग थे कोई रंगरेज़ उनकी नक़ल न कर पाए. सौन्दर्य इतने सही अनुपात में हर इंच में फैला हुआ था की पक्षपात करने  की कोई सम्भावना शेष न थी.

मै सपरिवार नैनीताल छुटियाँ मनाने गई थी. हम होटल मनु महारानी में रुके थे. होटल थोड़ी ऊंचाई पर स्थित था .होटल तक पहुँचने के लिए करीब २० सीढ़ी चढ़ना  पड़ता था और हमारी  फूलती सांस हमारे पहनावे, भाषा, मोबाइल फोन्स, और कार की तरह हमारे शहरीपन  का परिचय दे रही  थी. होटल से ताल का दृश्य बहुत सुन्दर दीखता था मानो किसी मचान पर बैठे हो. वहां आकर ऐसा लगा की बहुत धीमे स्वर में बात कितने आसानी से सुनी जा सकती है और चिल्लाने की कोई ज़रुरत नहीं है. उन तीन दिनों में मैंने एक भी कुत्ते को भौंकते  हुए नहीं सुना.

हम अगले दिन सुबह जल्दी ही उठ गए और इसके लिए मुझे खासी मशक्कत करनी पड़ी क्योंकि बच्चे और मेरे पति देर तक सोने के आदी  हैं. और उन्हें हमेशा ये शिकायत रहती है कि हर बार किसी भी पहाड़ पर आने के बाद मुझे सूर्य उदय देखने का एक दौरा पड़ता है. और पिछली बार जब मैंने मसूरी में यह हठ किया था और हम सूर्योदय देखने निकले थे तो बन्दर हमारे पीछे पड़ गए थे शायद पूरी रात प्रतीक्षा करने के बाद हम ही वह  पहले जजमान  थे जिनसे वह कुछ स्वादिष्ट व्यंजनों की आशा कर रहे थे. और आशान्वित भोजन न पाकर उन्होंने हमें खदेड़ कर ही दम लिया था. और यह बात हर बार मेरे इस प्रस्ताव को पस्त करने के लिए आज तक एक अस्त्र की तरह प्रयोग में लाई  जाती है.




हमने तय किया कि सबसे पहले पूरी ताल का एक चक्कर लगाकर अपनी उपस्थिति  दर्ज  करवा  दें.  लक्षित दूरी का आधा ही रास्ता तय हुआ होगा कि एक नाविक ने रास्ता रोक लिया.  मैं उसे रास्ता रोक लेना इसलिए कहूँगी कि  वह बच्चो के लिए इतना रोचक प्रस्ताव था के आगे के मंजिल नाव में ही तय हुई.  उसकी नाव दूसरी नावों की अपेक्षा कम सुसज्जित  थी.  उसने बताया के ताल की गहराई १२० फुट है और वह सामने वाला पहाड़ पहले दुगना ऊंचा था और वहां से चीन की दीवार दिखती थी. अब वह टूट टूट कर आधा रह गया है. उसने यह भी बताया कि  इस बार सैलानी ही नहीं हैं. वरना बारी की प्रतीक्षा करनी पड़ती है. यह बताते हुए उसके चेहरे पर गर्व की एक रेखा खिंच गई जो संभवत:  बरसो से उसके व्यवसाय के प्रति  उसकी  निष्ठां से  उपजी थी . मेरे पति का वार्तालाप उसके साथ जारी था और नैनीताल के सब पर्यटक स्थानों से लेकर उसके रहन सहन, उसकी आय, लाईसेंस के दाम  तक का लेखा जोखा उनकी स्मृति  में सुरक्षित हो गया था. प्रकृति का आशीष बरस रहा था. अपने नाम पर एक पूरे नगर के नाम का गौरव समेटे ताल  इतनी विनीत और इतने शांत थी मानो कोई सन्यासी निर्वाण प्राप्त करने के बाद विदेह हो जाए. किनारे पर खड़ी एक निर्धन किशोरी अपनी आँखों के अल्हड़पन से ही किसी का भी घमंड चूर कर सकती थी. वहां की चिड़िया भी मुझे शहरी चिड़िया से अधिक मस्त लगी. मछलियाँ भी अधिक खुश थी आटे का गोला खाने के बाद यूं लगा धन्यवाद कह गई है. शायद यह मेरी नज़र का फेर था.एक कुत्ता एक होटल की छत पर यूं बुत बन कर खड़ा था की एक पल के लिए मुझे भ्रम हो गया के वह वास्तव में सजावट के लिए होटल की छत पर तराश दिया गया है. लेकिन वहां के सौन्दर्य में शायद किसी मानवीय प्रयास से रचे कृत्रिम बुत व्यवधान ही उपस्थित करता  , कुत्ते ने अपनी पूँछ हिलाकर इसकी पुष्टि कर दी.


नाविक ने हमें नयना माता के मंदिर के निकट किनारे  पर  छोड़ दिया . हमने माता के दर्शन किये . मेरी बेटी ने अपनी इच्छाओं की लम्बी सूची माता के दरबार में प्रस्तुत कर दी. इस सूची पर उसने रात भर बैठ कर 'होम वर्क' किया था. 'आपने क्या माँगा?' उसके निश्चित प्रश्न का उत्तर मै हर बार मंदिर के प्रांगण में ही सोच लेती हूँ.


हम काफी  जगह घूमे लेकिन मुझे गुफाओं के बगीचे और बड़ा पत्थर ने विशेष रूप से आकर्षित किया. टाईगर गुफा अन्दर से बहुत संकरी है. सुविधा के लिए प्रकाश कर दिया गया है  उससे गुफा दर्शनीय तो हो गई लेकिन उसका वजूद ख़त्म हो गया . गुफा अँधेरे, भय और मन के अचेतन से सम्बंधित है. यह गुफा प्रकृति ने बनाई होगी  उसमे बहुत सा योगदान किसी चीते की इच्छा का भी रहा होगा और उसे तराशने में चीते के  नखों ने भी प्रयास किया होगा. विगत में हुई  हिंसा और हिंसक गतिविधियाँ इतिहास में स्थान प्राप्त करने के बाद हमेशा रोचक हो जाती हैं.






 बड़ा पत्थर पर अंग्रेजी राज्य में सज़ा काटने के लिए कैदी को पत्थर के दूसरी तरफ निर्वासित कर दिया जाता था.


उसके बाद हमने  एक ऐसी  पहाड़ी की ओर प्रस्थान किया  जहाँ से हम हिमालय दर्शन कर सकते हैं. बहुत से लड़के अपना टैली-स्कोप छोड़ के हमारी तरफ लपके. अभी एक से सौदा सौ रूपये में पट ही रहा था की उसका प्रतिद्वंद्वी बीच में आ टपका और बोला मैं ५० में दिखाऊंगा. अभी वाले ने फ़ौरन ५० पर ही  हामी भर दी. लेकिन उसका प्रतिद्वंद्वी या तो बहुत बड़ा शातिर था या फिर उससे कोई पुराना हिसाब चुकता कर रहा था बोला ३० रूपये में दिखाऊंगा. हमारे वाला अपना ग्राहक छोड़ने को कहाँ तैयार था बोला मै भी ३० में दिखाऊंगा. अब उसने तुरुप का पत्ता फेंका बोला साथ में दूरबीन भी दूंगा. दूरबीन रहित हमारा वाला अब मायूस हो गया . उसे लगा अब तो हम हाथ से गए. लेकिन हमने अपनी ग्राहकी निष्ठां का परिचय देते हुए अपना पाला नहीं बदला.
c


बादल उपद्रवी हो गए थे और संभवत: इस बाजारी खेल से रुष्ट होकर हमारे और हिमालय के बीच में आ गए थे. और यह ऐलान कर दिया था न तो ३० और न ही १०० में किसी भी दाम पर हिमालय का मोल भाव नहीं किया जा सकता. टेली-स्कोप से  हमने  मुक्तेश्वर मंदिर भी देखा. एक लाल हनुमान जी का मंदिर जो सैन्य क्षेत्र में है और आम नागरिक के लिए प्रवेश वर्जित  है.और वह पॉइंट जहाँ सैनिक रॉक क्लाईम्बिंग करते हैं. कोसी नदी पतले काले तार की तरह तलहटी में बह रही थी. उस अखंडित अस्तित्व में तिरोहित होते हुए हम खुद को एक स्वप्न में बदलते हुए देख रहे थे.


अगले दिन मेरी बेटी ने जिम कोर्बेट जाने के लिए टाइगर प्रिंट की पोशाक पहनी और बोली की 'टाइगर मुझे देख कर कुछ नहीं कहेगा सोचेगा मेरी बहन है. मैंने कहा लेकिन हम सब पर आक्रमण कर देगा सोचेगा मेरी बहन को कहाँ ले कर जा रहें हैं'. हम बहुत हँसे. हमारा सारा विषाद, अवसाद, परेशानियाँ और तनाव उन्ही पहाड़ियों पर ही रह गया था. हम खुश थे, थोड़े अधिक हरे भरे, थोड़े अधिक एक दूसरे के साथ बंधे हुए.
जिम कॉर्बेट पहुँचने पर पता लगा की टिकेट उपलब्ध नहीं है और किसी एजेंट की जुगाड़ से ही यह संभव हो पायेगा. एजेंट ने टाइगर देखने का जो दाम बताया उतने में तो एक छोटा मोटा टाइगर सा दिखने वाला कुछ खरीद कर ड्राईंग रूम में सजाया जा सकता था. इस देश में आम आदमी को शायद टाइगर देखना भी नसीब नहीं. वैसे भी यह अमीरों के ही चोंचले रहे है. पहले शिकार करने के लिए  उसका पूरे टाइगर समाज पर कब्जा था अब टाइगर देखने की सारी सीटों पर.  - लीना मल्होत्रा.     

5 comments:

sanju said...

tumhari journey to bahut achi rahi aur tumhara exp. sun k sach me achha laga, normally log to pata nahi bada chada k likhte hain but i really like the way u share ur experience.

gagan said...

aap bhasa saili achhi hai or aap ki journey bhi achhi thi

Ramji Yadav said...

जब भी किसी लेख या टिप्पणी को कोई पढ़ता है तो दरअसल वह उसका एक हिस्सा हो जाता है और प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से उसमे आए व्यक्तियों और स्थानों से अपना एक रिश्ता और राबता भी बनाता है। बेशक वह वहाँ स्वयं न गया हो। नैनीताल का यात्रा वृत्तान्त वास्तव मे दिल्ली की स्त्री के आत्मकथ्य जैसी मार्मिकता लिए हुये है जो अपने परिवार के साथ थोड़ा सुकून और अपनी मानवीय उत्कंठाओ को जीना चाहती है। हालांकि इस क्रम मे वह शब्दों को बहुत कंजूसी से से खर्च करती हैं । फिर भी यह वृत्तान्त बहुत आकर्षक और आत्मीय है।

Anonymous said...

Aapne bohot sundar dhang se apne aapko express kiya hai. Seems like you enjoyed quite a bit. padne mein maza aaya.

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

array waah mujhe bhi nainital se laute ek hafta bhi nahin hua... ise padhkar laga jaise wahan se main lauta hi nahi hoon...