Wednesday 17 August 2011

कई टुकड़े मैं ...

(मेरी यह कविता दैनिक जागरण(जम्मू) २२ अगस्त २०११ में प्रकाशित हुई है).




एक टुकड़ा    
मेरे मन की उदासियों के द्वीप पर रहता है 
सैलाब में डूबता उतरता भीगता रहता है
उसे नौका नहीं चाहिए 

एक टुकड़ा
थका मांदा 
चिंता में घुलता है पार उतर जाने की 
चालाकियों की तैराकी सीखता है  
युक्तियों में गोते लगाता है
फिर भी
भीगना नही चाहता  
सैलाब से डरता है डरता है

एक टुकड़ा
जिद्दी
अहंकारी
सपनो की मिटटी लगातार खोदता है
सोचता है
डोलता है
डांवा डोल
भटकता है

एक टुकड़ा विद्रोही है
वह तोड़ता है वर्जनाये
ठहरे हुए पानी को खड्डों में से उडाता है
छपाक छपाक

एक टुकड़ा स्वार्थी है
सुवर्ण लोम को फंसाता है
उसकी पीठ पर सवार करता है समंदर पार
फिर उसी सुवर्णलोम की हत्या कर नीलाम करता है उसकी खाल

एक टुकड़ा वीतरागी
किनारे पर खड़ा देखता है
उसकी आसक्ति दृश्य से है
वह धीरे धीरे टेंटालस के नरक की सीढियां उतरता है 

एक टुकड़ा
भेज देती हूँ तुम्हारे पास
तुम्हारे सीने पर मेरा हाथ है
और तुम सो रहे हो
वह भी सोता है तुम्हारे स्पर्शों में बहता है
साँसों में जीता है
उसे बाढ़ से बहुत प्रेम है


इन्ही टुकड़ों के संघर्ष, विरोध और घर्षण  में
बची रहती हूँ मैं
अपने पूरे अस्तित्व के साथ
एक रेत का समंदर मेरे भीतर पलता है
जिस पर कोई निशान शेष नही रहते.

-लीना मल्होत्रा
१७.०८.२०११ / समय ०९.०० साँय

Sunday 7 August 2011

मैं आई थी

मैंने तुम्हे देखा

किताबे बिखरी थी 
कुछ आधे लिखे पन्ने फाड़ कर फेंक दिए गए थे 
पेन खुला पड़ा था 
और बेसुध सोए हुए थे तुम
कुर्सी पर सर टिका था ...

बिना आहट और अधिकार के घुस आई हूँ मैं 
बची हुई चाय  प्याले में से उलट दी है और गंध और  स्पर्श  को बचा लिया है 
धुले  हुए  प्याले को  अभिवादन के लिए तैयार बैठा पाओगे  प्लेट पर 
सिगरेट की ऐश ट्रे की राख उड़ा दी है
और
धूएँ के सब गुनाह माफ़ करके उसे मुक्त कर दिया है 
सुबह तक  एक चिनार का पेड़ उगा मिलेगा उसमे

पागल दीवारों पर लिपटे हुए सब जाले और सिरफिरी धूल को पोंछ  दिया है. 

तुम्हारी खिड़की से जो  लाल गुलाब झांक रहा था 
उसे सहला कर 
समझा दिया है उपेक्षित महसूस न करे 
तुम व्यस्त हो...
बिस्तर पर कुछ सिलवटें बिखेर दी हैं 
धुली हुई चादर अलमारी से निकाल कर पैताने रख दी है 
और अलमारी में बंद कर दी हैं अलग अलग रंगों की  शुभ कामनाएं 
ठीक तुम्हारे कपड़ो के बराबर में 
वह इंतज़ार कर रही हैं...

न जाने कल तुम कौन सा रंग चुनोगे?