Sunday 31 July 2011

तीन बच्चे

लगातार  बढ़ रहा है कूड़े  का ढेर इस धरती की छाती पर
और ३ बच्चे उसे ख़ाली करने में जुटे हैं 
इनके गंतव्य बोरियों में इनके छोटे छोटे कंधो पर लदे हैं 
भर जायेंगी बोरियां  मैले कागजों के सपनों से 
भींचकर ले जायेंगे सारे वायरस और बैक्टीरिया  अपनी नन्ही हथेलियों में
ठेलकर दूर भगा देंगे सब तपेदिक हैजे और मलेरिया के कीटाणु 
और 
इंतजाम   करेंगे  फ्लैट में रहने वाले बच्चो की सुरक्षा का  

                -२-
बिंधी नज़रों से देखते हैं चाँद को
सोचते हैं
ये गोल मैला कागज़ का टुकड़ा
जो छिटक के भाग गया है उनकी गिरफ्त से
जिस दिन कब्जे में आएगा
बोरी में बंद करके शहर से बाहर फ़ेंक दिया जाएगा

        -३-
विराम लेते हैं 
अपने काम  से
खेलते है तीन छोटे बच्चे कूड़े के ढेर पर. 
दुर्गन्ध की अज़ान पर करते हैं सजदा
लफंगे  कीटाणुओ को सिखाते है अनुशासन आक्रमण का  
अपने क्रूर बचपन को निठ्लेपन की हंसी में उड़ा कर
कूड़े के ढेर में से  बीनते है  हीरों की तरह अपने लिए कुछ खिलौने 
एक को मिलता है एक अपाहिज सिपाही बिना हाथ का
दुसरे को  पिचकारी
तीसरे को टूटा हुआ  बन्दूक

  
उनके सपनो  के  गर्म बाज़ार में
नंगे पैर चलकर  इच्छाएं घुसती हैं उनींदी आँखों में
इश्वर की उबकाई से लथपथ पत्थर पर लेटे हुए
वे  सपने  में ढूंढते  है
 एक साबुत हाथ वाला आदमी
 लाल रंग
 गोलियां

देश की सड़ांध चित्रों में सजकर सेंध लगाती है मानवीयता के बाज़ार में
देश प्रगति के बंदरगाह पर एंकर  गिरा देता है
देशों के विदेश मंत्री मिलते हैं चाय पर
और रजामंद होते हैं एक साँझे  बयान के लिए  
"हम आतंक के दुश्मन हैं".

--लीना मल्होत्रा 

Thursday 28 July 2011

धुन

नहीं
मै नही दिखाना  चाहती अपने घाव  हरे भरे
तुम्हारी  सहानुभूति  नही चाहिए मुझे
मैं जानती हूँ  तुम  मुझे मलहम लगाने के बहाने आओगे
और
उत्खनन करोगे  मेरे आत्मसम्मान की रक्त्कोशिकाओ का

मै तो बजना चाहती हूँ बांसुरी सी
 कींचल के पेड़  की तरह जो अपने ही सूराखो से बज उठता  है हवा के गुजरने पर
अपने ही ज़ख्मो से छेड़ देता है एक धुन मीठी दर्द भरी.

पेपरवेट में बंद  हवा जैसे सपने कैद हैं मेरी स्मृति में
जिन्हें मुक्त नही किया जा  सकता मुझे तोड़े बिना

कई बार ऐसे अपरिचित बादल बरस जाते हैं जो मेरे आकाश के  नही थे
उन्हें भटका के ले आया था  मेरा  ही संकल्प
 उनकी बारिश में खुशबु पा लेती हूँ तुम्हारे नाम की

तुम नही समझते जब तुम्हारा नाम किसी और के मुहं  से सुन  लेती हूँ
तो ये किसी प्रगाढ़ मिलन  से कम नही होता

और जख्मो का जिंदा रहना  तब और भी ज़रूरी हो जाता है
जो हर दम मुझे अहसास करते हैं
मरी नहीं हूँ मैं
मरे  नहीं हो तुम
जिंदा हैं दोनों इस दुनिया के किन्ही  अलग अलग कोनो में
अपने अपने झरनों के समीप
मुस्कुराते हुए  बह रहे हैं सागर में शेष हो जाने के लिए..

-लीना   मल्होत्रा


Friday 15 July 2011

ओ गोली वाले ..बम वाले

उनमे से कोई स्त्री
उसने पकाई थी तुअर की दाल और रोटी
शायद फिर कभी न बना पाए वो दाल
वो सोचेगी ये दाल मनहूस है

उसने पहनी होगी पीली धोती
सोचेगी पीला रंग मनहूस है

वह नही छोड़ने आई थी
पति को द्वार तक
उसने सोचा था रोज़ ही तो जाता है
उतनी देर में वह बच्चे का दूध गरम कर लेगी
उतनी देर में वह दुआ भी तो मांग सकती थी
उसने क्यों नही कहा इश्वर अंग संग रहना
उसने क्यों नही माँगा कि वह फिसल कर गिर पड़ती
उसका हाथ पैर या बाजू टूट जाती
वह रह जाता घर पर ही उसकी सुश्रुषा के लिए
उसने क्यों कहा था घर जल्दी आना
शाम को घूमने  चलेंगे
वह न कहती तो शायद वह अगली ट्रेन से आता

उसने क्यों न पहने  मंगल के कुसुम बालो में
उसने क्यों नही फ़ोन उठाया उस दिन
क्यों वह रूठ गई छोटी सी बात पर

अभी लाश लेने जाना है
जाने कौन सा हाथ टूटा होगा
जिससे पहली बार उसने ढकी थी उसकी आँखे और वह उसके स्पर्श में खो गई थी 
या फिर पैर जिससे उसने घूमे थे उसके साथ सात फेरे
साबुत होगा क्या उसका सर
जिसमे रहती थी सारी चिंताए प्यार और फ़िक्र
क्या पूरी होंगी वो आँखे
देख पाएगी अपनी छवि अंतिम बार उन आँखों में

ओ गोली वाले , बम वाले

तेरा उत्सव तो ख़त्म हो गया बस एक शाम में
उसकी शामे ही ख़त्म हो गई

बहुत से लोग मर गए
अनेक ज़ख़्मी हुए
जो घर में थे वो बुत में बदल गए ..

लेकिन जबकि तुम यह सोचते हो गोलीवाले  तुमने किया है 
उसका यह मानना है  कि वह खुद ही ज़िम्मेदार  है 
तो इस तरह तो जाने अनजाने वह तुम्हारी ही सहयात्रिणी हो गई है 
उसके जीवन की इस अंतिम यात्रा में जो अनंतकाल तक चलेगी

तेरा एक आंसू 
क्या तुम  नही बहाओगे  गोली वाले ...

--लीना मल्होत्रा 

Tuesday 5 July 2011

वह बात जो शब्दों में नही कही जा सकती थी...

शब्दों  के जादूगर ने रचाया ऐसा तिलिस्म
कि
हो गया सब काया कल्प
पेड़ पौधे हो गए छू मंतर
दिन घंटे युग बह गए नदी बन कर
बहने लगे साथ ही  प्रतिबद्धताओं के तिनके
धूएं के बादल बन गए  वचन 
और निष्कर्ष के मसौदे की  चिन्दियाँ फंस गई चक्रवात में  
औरत का दिल कबूतर बन कर 
मापने लगा आसमान
आसमान जो कभी भी समंदर कि देह धारण कर सकता था 

तब 
वह बात जो शब्दों में नही कही जा सकती थी
चुपचाप जा बैठी सन्नाटे की कोख में 
उस आकार की प्रतीक्षा में
जो 
इस काया कल्प की परिधि से परे हो
शाश्वत हो !

इस खतरनाक जादुई माहौल  में वह अपने  प्यार का इज़हार कैसे करती ?

- लीना मल्होत्रा.

Friday 1 July 2011

अजब इश्क है दोनों का...

अभी अभी जिस आग से उतरी  है दाल
उसी आग पर चढ़ गई है  रोटी जवान  होकर पकने के लिए 

दोनों  प्रतीक्षा करते है 
थाली का...
कटोरी का...
और कुछ क्षण के सानिध्य का  

रोटी मोहब्बत में
टुकड़ा टुकड़ा   टूट कर 
समर्पित होती है ...

डूबती है दाल में 

और गले मिल कर
डूब जाते हैं दोनों साथ साथ मौत के अंधे काल में 

अजब इश्क है दोनों का...

-लीना मल्होत्रा