आदतन
जब पुरुष गुट बनाकर खेलते हैं पत्ते
स्त्रियाँ धूप में फैला देती हैं पापड बड़ियाँ और अपनी सर्द हड्डियाँ
जमा कर लेती हैं धूप अँधेरे में गुम आत्माओं के लिए
बुन लेती हैं स्वेटर
धुन लेती हैं रजाइयां
ठिठुरती संवेदनाओ के लिए
मर्द जब तनाव भगाने को सुलगाता है बीडी
भरता है चिलम
औरतें बन जाती हैं खेल के मैदान की गोदी
बच्चे धमाचौकड़ी लगा चुकते हैं जब
पुचकार कर उन्हें
बच्चे धमाचौकड़ी लगा चुकते हैं जब
पुचकार कर उन्हें
करवा देती हैं होम वर्क
संवार देती हैं बाल
गूंथ देती हैं चोटियाँआदमी ऊंघते हैं जब थक कर
स्त्रियाँ सम्हाल लेती हैं उनकी दुकाने
पुरुषों ने फेकने को निकली थी जो नकारा चीज़े
बेच देती हैं वे उन अपने जैसी लगने वाली आत्मीय चीजों को
कुशलता से समझा देती हैं उनकी उपयोगिता ग्राहकों को
पुरुषों ने फेकने को निकली थी जो नकारा चीज़े
बेच देती हैं वे उन अपने जैसी लगने वाली आत्मीय चीजों को
कुशलता से समझा देती हैं उनकी उपयोगिता ग्राहकों को
आदमी के घर लौटने से पहले
बुहार कर चमका देती हैं पृथ्वी
फूंक मार कर उड़ा देती हैं धूल दूर अन्तरिक्ष में
फूंक मार कर उड़ा देती हैं धूल दूर अन्तरिक्ष में
ठिकाने लगा देती हैं बेतरतीबी से बिखरी चीज़ें
अंधेरों को कर देती हैं कोठरियों में बंद
अंधेरों को कर देती हैं कोठरियों में बंद
परोस देती हैं गर्म खाना
थका मांदा पुरुष पटियाला की खुमारी में सो जाता है जब
बचे खुचे समय में सुलगते सपनो को भर देती हैं इस्त्री में
और पुरुषों की जिंदगी में बिछी सलवटों को
मुलायम चमकदार बना देती हैं..
सोते सोते
सुबह के लिए सपनो में सब्जी काटती रहती हैं जब उनकी उंगलियाँ
आँखे जुदा होकर देह से
समानांतर जीवन जी आती हैं
पृथ्वी जैसे लगने वाले किसी और ग्रह पर
मुलायम चमकदार बना देती हैं..
सोते सोते
सुबह के लिए सपनो में सब्जी काटती रहती हैं जब उनकी उंगलियाँ
आँखे जुदा होकर देह से
समानांतर जीवन जी आती हैं
पृथ्वी जैसे लगने वाले किसी और ग्रह पर
- लीना मल्होत्रा