पता नही क्यों छिपाना चाहती हूँ अब
कि कोई रिश्ता नही है मेरा उससे..
मैं कुछ डरे हुए खंडहरों में भटक गई हूँ
और पेज नम्बर निन्यानवे से मेरे हाथ आया है
वर्षों से कर्फ्यू की दहशत का मारा
गुलाब एक सूखा हुआ
वर्षों से कर्फ्यू की दहशत का मारा
गुलाब एक सूखा हुआ
चिंदी चिंदी अनाथ टापुओं में बंटे शब्द..
जिनके अर्थ मेरी मुस्कराहट की पगडंडियों पर खो जाते थे .
वह
पागल पेड़ की जिद्दी छाया सा
टिका रहता था ठीक उसके नीचे
हवा को थक कर बदल ही लेना पड़ता था रास्ता
गुज़र नही पाती थी हम दोनों के बीच से
हवा को थक कर बदल ही लेना पड़ता था रास्ता
गुज़र नही पाती थी हम दोनों के बीच से
याद है कितना कुछ मुझे
बस याद नही कहाँ रख छोड़ी है बदले की कटार.
रख कर भूल गई हूँ कहीं
रख कर भूल गई हूँ कहीं
कहाँ है ?
ढूंढती हूँ हर उस जगह
जहाँ नही रखती कोई कीमती सामान.
ढूंढती हूँ हर उस जगह
जहाँ नही रखती कोई कीमती सामान.
तुलाई के नीचे बस छिछोरे बिजली पानी के बिल हैं
दाल के डिब्बों में बच्चों की फीस के लिए छिपा कर रखी पूँजी ,
मनौतियों की गुत्थी में दुआओं के इंतज़ार में सोये पुराने नोट
गर्म कोट की जेब में लुटेरी धूप निठ्ठली बैठी है सर्दियों की इंतज़ार में
नही कहीं नही है धार
न बदले की वो कटार
यही है मेरी अंतिम हार .
नही कहीं नही है धार
न बदले की वो कटार
यही है मेरी अंतिम हार .
-लीना मल्होत्रा