Monday 2 May 2011

एक माँ की प्रार्थना

एक माँ की प्रार्थना

प्यार होगा तो दर्द भी होगा
सफ़र होगा
तो होंगी रुकावटें भी
साथी होगा तो यादें होंगी
कुछ मधुर तो कुछ कडवी बाते भी होंगी
उड़ान होगी तो थकान होगी
सपने होंगे तो सच से दूरियां होंगी ;

मेरी बेटी
तुम्हारे नए सफ़र के शुरुआत में
क्या शिक्षा दूं तुम्हें --

प्यार मत करना - दर्द मिलेगा ,
सफ़र मत करना - कांटे होंगे ,
साथी मत चुनना - कडवी यादे दुःख देंगी
उड़ान मत भरना - थक जाओगी
इस दर्द से कांटो से आसुओं से भीगे रास्ते मत चुनना ,
मेरे ये डर कहीं तुम्हारे संकल्प को छोटा न कर दें
इसलिए
प्रार्थना में मैंने आखें मूँद ली है
और उन तैंतीस करोड़ देवी देवताओं का आह्वान किया है -

हे बाधाओं के देवता -
मैं तुम्हे बता दूं
कि वह बहुत से खेल इसलिए नहीं खेलती के हारने से डरती है
तुम ध्यान रखना कि
कोई बाधा इतनी बड़ी न हो
जो उसके जीतने के हौसले को पस्त कर दे
तुम उसे सिर्फ इतनी ही मुसीबतें देना
जिन्हें पार करके
वह विजयी महसूस करे
और
उसकी यह उपलब्धि
उसके सफ़र में एक नया उत्साह भर दे.

हे सपनो के देवता -
वह बहुत महंगे सपने देखती है
उसके सपनो में तुम सच्चाई का रंग
भरते रहना
ताकि
जब वह अपने सपनो कि नींद से जगे तो
सच उसे सपने जैसा ही लगे.

हे सच्चाई के देवता -
हर सच का कड़वा होना ज़रूरी नहीं है
इसलिए मेरी प्रार्थना स्वीकार करना
उसके जीवन के सच में
कडवाहट मत घोलना.

हे प्रेम के देवता -
मै तुम्हे आगाह कर दूं
कि
वह तुम्हारे साधारण साधकों कि तरह नहीं है
जो लफ्जों के आदान प्रदान के प्रेम से संतुष्ट हो जाए
वह असाधारण प्रतिभाओं कि स्वामिनी है
वह जिसे चाहेगी टूट कर चाहेगी ;
और समय का मापदंड उसके प्रेम की कसौटी कभी नहीं हो सकता
पल दो पल में
वह पूरी उम्र जीने की क्षमता रखती है
और
चार कदम का साथ काफी है
उसकी तमाम उम्र के सफ़र के लिए ;
इसलिए
उसके लिए
अपने लोक के
सबसे असाधारण प्रेमी को बचा कर रखना
जो लफ़्ज़ों में नहीं
बल्कि अपनी नज़रों से लग्न मन्त्र कहने की क्षमता रखता हो
और
जो उसके टूट के चाहने के लायक हो;

हे जल के स्वामी -
उसके भीतर एक विरहिणी छिपी सो रही है
जब रिक्तता उसके जीवन को घेर ले
और
वह अभिशप्त प्रेमी जिसे उसे धोखा देने का श्राप मिला है
जब उसे अकेला छोड़ दे
उस घडी
तुम अपने जल का सारा प्रवाह मोड़ लेना
वर्ना तुम्हारा क्षीर सागर
उसके आंसुओं में बह जाएगा
और तुम खाली पड़े रहोगे -
बाद में मत कहना कि मैंने तुम्हे बताया नहीं

हे दंड के अधिपति -
तुम्हे शायद
कई कई बार
उसके लिए निर्णय लेना पड़े I
क्योंकि वह काफी बार गलती करती है
लेकिन मै तुम्हे चेता दूं कि बहुत कठोर मत बने रहना
क्योंकि तुम्हारा कोई भी कठोर दंड
उसके लिए एक चुनौती ही बन जायेगा
तुम्हारे दंड कि सार्थकता
अगर इसी में है
कि
उसे
उसकी गलती का अहसास हो तो
तो थोड़े कोमल बने रहना
एक मौन दृष्टि
और
एक पल का विराम काफी है
उसे उसकी गलती का बोध कराने के लिए I

हे घृणा के देवता -
तुम तो छूट जाना
पीछे रह जाना
इस सफ़र में उसके साथ मत जाना
मै नहीं चाहती
कि किसी से बदला लेने कि खातिर
वह
अपने जीवन के कीमती वर्ष नष्ट कर दे

हे जगत कि अधिष्ठानी माता
तुम्हारी ज़रुरत मुझे उस समय पड़ेगी
जब वह थकने लगे
और उसे लगने लगे कि यह रास्ता अब कभी ख़त्म नहीं होगा
उसके क़दम जब वापसी की राह पर मुड जाएँ
और वह थक कर लौट आना चाहे
उस समय
तुम अपनी जादुई शक्तियों से
दिशाओं को विपरीत कर देना
और
अपने सारे जगत की चिंता फ़िक्र छोड़कर
मेरा रूप धारण कर लेना
और उसे अपने आँचल में दुबका कर
उसकी सारी थकान सोख लेना
और बस इतना ही नहीं
उसकी पूरी कहानी सुनना
चाहे वह कितनी ही लम्बी क्यों न हो
और हाँ !
उसकी गलतियों पर मुस्कुराना
मत वरना वह बुरा माँ जायेगी
और
तुम्हे
कुछ नहीं बताएगी
जब उसकी आँखों में तुम्हे एक आकाश दिखने लगे
और होंठ मौन धारण कर लें
और उसकी एकाग्रता उसे एकाकी कर दे
तब तुम समझ जाना
कि
वह लक्ष्य में तल्लीन होकर चलने के लिए तत्पर है
तब
तुम चुप चाप चली आना
मै जानती हूँ कि वह
अब
तब तक चलेगी जब तक उसकी मंजिल उसे मिल नहीं जाती.

जाओ बेटी
अब तुम अपना सफ़र प्रारंभ कर सकती हो
तुम्हारी
यात्रा शुभ हो
मंगलमय हो

कवयित्री  लीना मल्होत्रा

2 comments:

Anonymous said...

This poem speaks to you, and your heart, and it leaves an impression. And my heart and me, both are glad to have read this poem. Thankyou.

madhu said...

yeh har maa ki prathana hai.great