Wednesday 23 November 2011

मैं अज्ञात निर्विकार अकेलापन


तुम  तमाम कोशिशें कर लो

प्यार की टोकरियाँ उपहार में दे दो
ताकि सुगंधों में खो जाऊं
गठबंधन कर दो जिनकी रक्षा में  चुक जाऊं
परिवारों की जलती भट्ठी में झोंक दो
सुकोमल बच्चे पैदा करो  जिनकी निर्द्वंद्व इच्छाएं  जीवन को  नोच डाले
पराजित करो मुझे
ताकि अपमानित हो
बार  बार ढूंढूं  कन्धा  रोने के लिए
उपलब्धियों के टापू बसा दो
ताकि भीड़ की तृष्णा इन  टापूओं पर काट काट कर रोपती रहे मुझे

लाद दो जिम्मेदारियां
नंगी तलवारों से लड़ने की
वक्त से महरूम कर दो
ताकि सोच भी न पाऊँ मैं

लेकिन मैं अज्ञात निर्विकार अकेलापन
बचा  रहूँगा

निर्लिप्त इन सरोकारों से

अपनी ही मिटटी और धूप से होता बड़ा
पलूंगा भीतर

साथ चलूँगा जैसे चांदनी रात में चलता है चाँद
विस्तृत तारों भरा आसमान

मर जाऊंगा चुपचाप अपनी एकनिष्ठा से तुम्हारी देह के लुप्त होने  के बाद
मुझे रोने वाला कोई नही चाहिए

-लीना मल्होत्रा