प्यार में धोखा खाई किसी भी लड़की की
एक ही उम्र होती है,
उलटे पाँव चलने की उम्र!!
वह
दर्द को
उन के गोले की तरह लपेटती है,
और उससे एक ऐसा स्वेटर बुनना चाहती है
जिससे
धोखे की सिहरन को
रोका जा सके मन तक पहुँचने से!
वह
धोखे को धोखा
दर्द को दर्द
और
दुनिया को दुनिया
मानने से इनकार करती है
वह मुस्कुराती है
उसे लगता है
कि
सरहद के पार खड़े उस बर्फ के पहाड़ को
वह अपनी उँगलियों
सिर्फ अपनी उँगलियों की गर्मी से
पिघला सकती है
फिर उँगलियाँ पिघल जाती हैं और सर्द पहाड़ यूँ ही खड़ा रहता है
वह
रात के दो बजे नहाती है
और खडी रहती है
बालकनी में सुबह होने तक,
किसी को कुछ पता नहीं लगता
सिवाय उस ग्वाले के
जो रोज़ सुबह चार बजे अपनी साइकिल पर निकलता है !
उसका
दृश्य से नाता टूटने लगता है
अब वह चीज़ें देखती है पर कुछ नहीं देखती
शब्द भाषा नहीं ध्वनि मात्र हैं
अब वह चीज़े सुनती है पर कुछ नहीं सुनती
पर कोई नहीं जानता ...
शायद ग्वाला जानता है
शायद रिक्शा वाला जानता है
जिसकी रिक्शा में वह
बेमतलब घूमी थी पूरा दिन और कहीं नहीं गई थी
शायद माँ जानती है
कि उसके पास एक गाँठ है
जिसमें धोखा बंधा रखा है
प्यार में धोखा खाई लड़की
शीशा नहीं देखती
सपने भी नहीं
वह डरती है शीशे में दिखने वाली लड़की से
और सपनो में दिखने वाले लड़के से,
उसे दोनों की मुस्कराहट से नफरत है
वह नफरत करती है
अपने भविष्य से
उन सब आम बातों से
जो
किसी एक के साथ बांटने से विशेष हो जाती हैं I
प्यार में धोखा खाई लड़की का भविष्य
होता भी क्या है
अतीत के थैले में पड़ा एक खोटा सिक्का
जिसे
वह
अपनी मर्ज़ी से नहीं
वहां खर्च करती है
जहाँ वह चल जाए I
कवयित्री --लीना मल्होत्रा
9 comments:
"शायद माँ जानती है
कि उसके पास एक गाँठ है
जिसमें धोखा बंधा रखा है"
........माँ ही जान सकती है !
aapki kavita ne jhakjhor ke rakh dia mahodya,
प्यार में धोखा खाई लड़की का भविष्य
होता भी क्या है
अतीत के थैले में पड़ा एक खोटा सिक्का
... good one
मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.
निश्चय ही यह बहुत परिपक्व कविता है जो भावनाओं और विचारों के गहरे सामंजस्य से रची गई है। पहली बार पहली कविता पढ़ने पर इसलिए खुशी हुयी कि ऐसी ही लीनजी कि तमाम अन्य कवितायें भी होंगी।
बहुत खूब ......!!
ओह...
उलटे पाँव चलने की उम्र!!
निःशब्द कर दिया, विरह का यथार्थ चित्रण. आभार
धोखा खाने की पीड़ा...पूरी कविता में बह रही थी
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