तुम तमाम कोशिशें कर लो
प्यार की टोकरियाँ उपहार में दे दो
ताकि सुगंधों में खो जाऊं
गठबंधन कर दो जिनकी रक्षा में चुक जाऊं
परिवारों की जलती भट्ठी में झोंक दो
सुकोमल बच्चे पैदा करो जिनकी निर्द्वंद्व इच्छाएं जीवन को नोच डाले
पराजित करो मुझे
ताकि अपमानित हो
बार बार ढूंढूं कन्धा रोने के लिए
उपलब्धियों के टापू बसा दो
ताकि भीड़ की तृष्णा इन टापूओं पर काट काट कर रोपती रहे मुझे
लाद दो जिम्मेदारियां
नंगी तलवारों से लड़ने की
वक्त से महरूम कर दो
ताकि सोच भी न पाऊँ मैं
लेकिन मैं अज्ञात निर्विकार अकेलापन
बचा रहूँगा
निर्लिप्त इन सरोकारों से
अपनी ही मिटटी और धूप से होता बड़ा
पलूंगा भीतर
साथ चलूँगा जैसे चांदनी रात में चलता है चाँद
विस्तृत तारों भरा आसमान
मर जाऊंगा चुपचाप अपनी एकनिष्ठा से तुम्हारी देह के लुप्त होने के बाद
मुझे रोने वाला कोई नही चाहिए
-लीना मल्होत्रा
22 comments:
"ताकि भीड़ की तृष्णा इन टापूओं पर काट काट कर रोपती रहे मुझे "
एक अच्छी गंभीर बात कही आपने , बढ़िया
Bahut khoob Leena ji.
निर्विकार में कुछ है
जान नही पा रहे जिसे
क्या है ?
क्यों है
युगों-युगों से,
जन्मों से अज्ञात ?
और कब तक रहेगा
युँ ही अ-प्रकट
रोमांचित करता
सुलाता
जगाता
रहस्यमय ...
ओ ..
दिक् में
दिगन्त तक
सर्वव्यापी
रहस्य....
तुम कब तक रहोगे मुझ पर
अप्रकट
अज्ञात ?
behatreen prastuti
आपने अपनी एक भाषा और कहन विकसित कर ली है..जो लगातार समृद्ध हो रही है.
बहुत खूब लीना! वक़्त से महरूम .. शून्य से उठ रही है सशक्त गूंज .. चले चलो ..
बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति. हमेशा की तरह भावपूर्ण !!
लुट गए ! :-)
लीना जी की इस कविता में वेदना की जो स्मृति अभिव्यक्त हुई है वह अंततः जीवन की ही अनुभूति है; इसलिए यह अस्वाभाविक नहीं लगता कि उसका सहज स्वीकार भी लीना जी की कविता में न केवल जिजीविषा का ही एक प्रकार है बल्कि उसे एक सार्थकता भी देता है | यह नहीं कि लीना जी की इस कविता में वेदना के लिए कोई ललक है, लेकिन उसकी स्मृति भी जीवन के हमारे बोध को न केवल प्रामाणिक बल्कि और गहरा भी करती है |
"लाद दो जिम्मेदारियां
नंगी तलवारों से लड़ने की
वक्त से महरूम कर दो
ताकि सोच भी न पाऊँ मैं
लेकिन मैं अज्ञात निर्विकार अकेलापन
बचा रहूँगा"
लीना जी की यह कविता एक स्त्री की गहन वेदना को व्यक्त करती है | यह अहसास दिलाती है कि औरत को नंगी तलवार से लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया गया है | उसका अस्तित्व केवल मर्द की दुनिया की स्वार्थ पूर्ति के लिए ही है चाहे दिखाने के लिए खुशुबू का उपहार मिले या फिर गाली |
एक शानदार कविता के लिए बधाई जी |
- शून्य आकांक्षी
हमेशा की तरह . कमाल हो लीना ..
बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति. हमेशा की तरह भावपूर्ण !!
क्या कहूँ लीना जी इस बेमिसाल रचना के लिये………निशब्द हूँ।
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-708:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
गंभीर और सुन्दर संवेदनात्मक रचना....
सादर बधाई...
liina ji namaskaar, bhaavpuurn rachna badhaai
हमेशा मैंने आपकी लेखनी को पसंद किया है आज भी वैसे ही भाव...
मुस्करा रही हूँ पढकर ...पीड़ा की मुस्कान ....:)
dil ko chu gayee apki kavita!
पढ़ते पढ़ते खो जाने वाली कविता...
सुन्दर रचना...........
मेरा ब्लॉग पढने की लिए इस लिक्क पे आईये...
http://dilkikashmakash.blogspot.com/
हर एक डूबने वाला ये सोचता है कि मैं
भंवर से बच के निकलता तो पार उतर जाता
बहुत खूब......आप बहुत अच्छा लिखती हैं.....कुछ आग सी है.....न जाने कैसे इतने दिनों आपके ब्लॉग से दूर रहा.....खैर देर आयद दुरुस्त आयद |
आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे|
कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए- (अरे हाँ भई, सन्डे को भी)
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
http://khaleelzibran.blogspot.com/
http://qalamkasipahi.blogspot.com/
एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
--
बुधवारीय चर्चा मंच ।
Post a Comment