लगातार बढ़ रहा है कूड़े का ढेर इस धरती की छाती पर
और ३ बच्चे उसे ख़ाली करने में जुटे हैं
इनके गंतव्य बोरियों में इनके छोटे छोटे कंधो पर लदे हैं
भर जायेंगी बोरियां मैले कागजों के सपनों से
भींचकर ले जायेंगे सारे वायरस और बैक्टीरिया अपनी नन्ही हथेलियों में
ठेलकर दूर भगा देंगे सब तपेदिक हैजे और मलेरिया के कीटाणु
और
इंतजाम करेंगे फ्लैट में रहने वाले बच्चो की सुरक्षा का
-२-
सोचते हैं
ये गोल मैला कागज़ का टुकड़ा
जो छिटक के भाग गया है उनकी गिरफ्त से
जिस दिन कब्जे में आएगा
बोरी में बंद करके शहर से बाहर फ़ेंक दिया जाएगा
-३-
विराम लेते हैं
अपने काम से
खेलते है तीन छोटे बच्चे कूड़े के ढेर पर.
दुर्गन्ध की अज़ान पर करते हैं सजदा
लफंगे कीटाणुओ को सिखाते है अनुशासन आक्रमण का
लफंगे कीटाणुओ को सिखाते है अनुशासन आक्रमण का
अपने क्रूर बचपन को निठ्लेपन की हंसी में उड़ा कर
कूड़े के ढेर में से बीनते है हीरों की तरह अपने लिए कुछ खिलौने
कूड़े के ढेर में से बीनते है हीरों की तरह अपने लिए कुछ खिलौने
एक को मिलता है एक अपाहिज सिपाही बिना हाथ का
दुसरे को पिचकारी
तीसरे को टूटा हुआ बन्दूक
दुसरे को पिचकारी
तीसरे को टूटा हुआ बन्दूक
उनके सपनो के गर्म बाज़ार में
नंगे पैर चलकर इच्छाएं घुसती हैं उनींदी आँखों में
इश्वर की उबकाई से लथपथ पत्थर पर लेटे हुए
नंगे पैर चलकर इच्छाएं घुसती हैं उनींदी आँखों में
इश्वर की उबकाई से लथपथ पत्थर पर लेटे हुए
वे सपने में ढूंढते है
एक साबुत हाथ वाला आदमी लाल रंग
गोलियां
देश की सड़ांध चित्रों में सजकर सेंध लगाती है मानवीयता के बाज़ार में
देश प्रगति के बंदरगाह पर एंकर गिरा देता है
देशों के विदेश मंत्री मिलते हैं चाय पर
और रजामंद होते हैं एक साँझे बयान के लिए
"हम आतंक के दुश्मन हैं".
--लीना मल्होत्रा
26 comments:
subah subah ek achhchhee kavita.
"Bache kaam pr kyo ja rhe h.!"
yah bhi bada sawal h..
achhi kavitao k liye shukriya.!!
बहुत अच्छी कविताएं
.
ईश्वर की उबकाई से लथपथ पत्थर पर लेटे हुए
वे सपने में ढूंढते है.................
सशक्त और मार्मिक कवितायेँ ,वीना जी !
ओह ! सुन्दर नहीं हैं ये कवितायेँ ..कलेजा काटने वाली हैं ! मन दुःख रहा है . कवि सफल हुआ है .
uff bandhu gajab ki smvedna...
"Teen bachche-maile kagjo ke sapne..".samvidhan ki kitab ke kagaj jo maile ho gaye sad gaye...ek paramparik bimb chaand ko "bindhi najron se dekhna....aur use shahar se bahar fek diya jaay..."bilkul hi navinta arth pradan ....
Aur sabse mahatwapurn....Eshwar ki ubkaaie se lathhpathh...dhudte hain ...Laal rang..Goliaa " aur yahaan par ek aatankwaadi/maaowadi/yaaa......eshara....
jo bhi ho yah kavita bahut naye purane bimbon ke pryog aur naye arthho ki abhivyakti ke sundar prayaas me ek abhutpurwa kavita ke bade falak par pahunchte-2 rah gayee. es anubhuti ke liye badhae...bahut..badhae---RAMJEE SINGH YADAV
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ है... थैंक्स टू फेसबुक..... अच्छा लगा ........
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ है... थैंक्स टू फेसबुक..... अच्छा लगा ........
जिन्हें दूसरों के दर्द से सरोकार है...
वही सही अर्थों में जीने का हक़दार है...
इस विडम्बना को हर कोई देखता है...पर उस दर्द को समझना...एक संवेदनशील ह्रदय का परिचायक है...
मन को छू लिया
सच ...देखकर भी अनदेखा करना ...कभी कभी कितना असह्य हो जाता है...
चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते...
शुभ कामनाएँ..ऐसे ही लिखती रहें...
गरीबी, संत्रास, भूख -भुखमरी भाग्यहीनता जैसे संवेदनशील और नेगेटिव पर यथार्थ मसलो के अलावा सकारात्मक सफल किरदारों के कथानको को भी कविता का विषय बनाया जाना चाहिए.कूड़े बीनने वाला एक बच्चा कही पर अपनी मेहनत से पढ़-लिख कर काबिल भी बना होगा!आपके शब्द मन के भीतर उतरकर बाहर नहीं निकलते. शुभकामनायें ...
dard ko mehsus karna thoda asaan hai,vnispt dard ko shakl dena.aap purntah safal hai.kuch samjhne ko mila kubh sochne ko.. ,vnispt dard ko shakl dena.aap purntah safal hai.kuch samjhne ko mila kubh sochne ko..
.
आदरणीया लीना जी
सादर अभिवादन !
जितनी ता'रीफ़ करूं , कम है …
बहुत संवेदनशील है आपकी लेखनी ! मर्माहत करने में समर्थ !
एकाध पंक्ति उद्धृत करने से संतुष्टि नहीं होगी … हर पंक्ति उद्धृत मानें ।
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
chand ko bori me bnd krna
adbhut .
achchhi kvitayen sbhi.
Bahut achchhi Kavita.
bahuta cha alagaa mil kar padh kar aur jaan kar ki jo safar DAV se shuroo kiyaa thaa kahan tak pahunh gayaa manzilen pas hain par parwaah kise hai
shubh kamanyen
NEETU BHAIYA
कुछ विशेष जरूर है
बहुत सुन्दर शब्दचित्र रचे हैं आपने!
दुर्गन्ध की अज़ान पर करते हैं सजदा....
aap le gayee hain pathak ko bhi samvedna ke us shikhar par.
सुन्दर कवितायें लीना जी बधाई और शुभकामनायें |
सुन्दर कवितायें लीना जी बधाई और शुभकामनायें |
सशक्त और कवितायेँ .....
bas ek shabd......adbhut.....
सिस्टम को नंगा करके रख दिया आपने... इससे ज्यादा क्या...
बाल मजदूर ..........
.......................बचपन की दीवारों में लगा चौखट जवानी का,कठिन सरम ही सुना जाती कहानी बूढ़ी नानी का,//खेलने की उम्र में बन गया ,समय के क्रूर कर का ,,मजदूरी मेरा कम हु दरिद्र घर का //
गर्भ में मिला श्रम ज्ञान माँ ने निपुर कर डाला ,,छाती से लगाया कम ,बढाकर पीठ से पाला//
गलाकर धुप में हड्डी ,पहनाया भूख को माला //मौत के मुह में जन्मा लगा इच्छाओ पर ताला///
,,,,,,,,,,,,,,,,,ज्योति प्रकाश सिंह
कूड़ा बीनने वाले बच्चों के बारे में लिखी कविता...मन को छू गयी.
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