उनमे से कोई स्त्री
उसने पकाई थी तुअर की दाल और रोटी
शायद फिर कभी न बना पाए वो दाल
वो सोचेगी ये दाल मनहूस है
उसने पहनी होगी पीली धोती
सोचेगी पीला रंग मनहूस है
वह नही छोड़ने आई थी
पति को द्वार तक
उसने सोचा था रोज़ ही तो जाता है
उतनी देर में वह बच्चे का दूध गरम कर लेगी
उतनी देर में वह दुआ भी तो मांग सकती थी
उसने क्यों नही कहा इश्वर अंग संग रहना
वह रह जाता घर पर ही उसकी सुश्रुषा के लिए
उसने क्यों कहा था घर जल्दी आना
शाम को घूमने चलेंगे
वह न कहती तो शायद वह अगली ट्रेन से आता
उसने क्यों न पहने मंगल के कुसुम बालो में
उसने क्यों नही फ़ोन उठाया उस दिन
क्यों वह रूठ गई छोटी सी बात पर
अभी लाश लेने जाना है
जाने कौन सा हाथ टूटा होगा
साबुत होगा क्या उसका सर
जिसमे रहती थी सारी चिंताए प्यार और फ़िक्र
क्या पूरी होंगी वो आँखे
देख पाएगी अपनी छवि अंतिम बार उन आँखों में
ओ गोली वाले , बम वाले
तेरा उत्सव तो ख़त्म हो गया बस एक शाम में
उसकी शामे ही ख़त्म हो गई
उसने पकाई थी तुअर की दाल और रोटी
शायद फिर कभी न बना पाए वो दाल
वो सोचेगी ये दाल मनहूस है
उसने पहनी होगी पीली धोती
सोचेगी पीला रंग मनहूस है
वह नही छोड़ने आई थी
पति को द्वार तक
उसने सोचा था रोज़ ही तो जाता है
उतनी देर में वह बच्चे का दूध गरम कर लेगी
उतनी देर में वह दुआ भी तो मांग सकती थी
उसने क्यों नही कहा इश्वर अंग संग रहना
उसने क्यों नही माँगा कि वह फिसल कर गिर पड़ती
उसका हाथ पैर या बाजू टूट जातीवह रह जाता घर पर ही उसकी सुश्रुषा के लिए
उसने क्यों कहा था घर जल्दी आना
शाम को घूमने चलेंगे
वह न कहती तो शायद वह अगली ट्रेन से आता
उसने क्यों न पहने मंगल के कुसुम बालो में
उसने क्यों नही फ़ोन उठाया उस दिन
क्यों वह रूठ गई छोटी सी बात पर
अभी लाश लेने जाना है
जाने कौन सा हाथ टूटा होगा
जिससे पहली बार उसने ढकी थी उसकी आँखे और वह उसके स्पर्श में खो गई थी
या फिर पैर जिससे उसने घूमे थे उसके साथ सात फेरेसाबुत होगा क्या उसका सर
जिसमे रहती थी सारी चिंताए प्यार और फ़िक्र
क्या पूरी होंगी वो आँखे
देख पाएगी अपनी छवि अंतिम बार उन आँखों में
ओ गोली वाले , बम वाले
तेरा उत्सव तो ख़त्म हो गया बस एक शाम में
उसकी शामे ही ख़त्म हो गई
बहुत से लोग मर गए
अनेक ज़ख़्मी हुए
जो घर में थे वो बुत में बदल गए ..
लेकिन जबकि तुम यह सोचते हो गोलीवाले तुमने किया है
उसका यह मानना है कि वह खुद ही ज़िम्मेदार है
तो इस तरह तो जाने अनजाने वह तुम्हारी ही सहयात्रिणी हो गई है
उसके जीवन की इस अंतिम यात्रा में जो अनंतकाल तक चलेगी
तेरा एक आंसू
क्या तुम नही बहाओगे गोली वाले ...
--लीना मल्होत्रा
--लीना मल्होत्रा
16 comments:
Mann ko chhu lene wali Kavita! iski kayi panktiyaan dil ko sahla jati hain . Sach hai ki ek stree hi stree ki komal bhawnaon ko sahi se samajh sakti hai.
apke blog par aana mann ko sukoon de gaya. Dhanyvaad.
एक मार्मिक और गहन वैचारिक अभिव्यक्ति जिसकी सराहना में एक गंभीर कसक की भी अनुभूति होती है | जीवन की विसंगतियों से मुक्ति कहाँ है जब तक हिंसा के समाधान की सार्थक युक्ति यहाँ है |
१५-०७-२०११
बहुत मार्मिक कविता है | काश आतंकवादी भी ऐसा साहित्य पढ़ते तो मानवता के विरुध्द कोई भी अपराध करने से पहले दस बार सोचते | आपको श्रेष्ठ लेखन के लिए साधुवाद |
आदरणीय लीना जी,
यथायोग्य अभिवादन् ।
बहुत से लोग मर गए
अनेक जख्मी हुए
जो घर में थे वो बुत में बदल गए ..
क्या बात कह दी आपने, आज की हकीकत है यह?
पहली बार मिलना हुआ आपसे अच्छा लगा.
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
http://babulgwalior.blogspot.com/
dil ko choo gai hai
हादसों की कल्पना करना हादसों से गुजरना होता है... आप ना जाने कितनी स्त्रियों की पीड़ा एक साथ पूरी संलग्नता में यहां बयान कर गई हैं... बधाई तो क्या दूं, इस पीड़ा में मेरी भी पीड़ा शामिल है।
हादसों की कल्पना करना हादसों से गुजरना होता है... आप ना जाने कितनी स्त्रियों की पीड़ा एक साथ पूरी संलग्नता में यहां बयान कर गई हैं... बधाई तो क्या दूं, इस पीड़ा में मेरी भी पीड़ा शामिल है।
बहुत सुंदर,
सच तो ये है गोली बम ने तो दुखी किया ही, उसके बाद कांग्रेस नेताओं ने जिस तरह की टिप्पणी की, वो कहीं ज्यादा तकलीफ देने वाली थी।
shayad saare andhvishwas aise hi janam lete honge..bahut shandar kriti..ye goli wala bam bale bam aur goli jaisi hi lagti hai..jhakjhor kar rakh deti hai..jaandar shabd..sambededna jagane wali kavita..
......... शानदार प्रस्तुति
आदरणीया लीना मल्होत्रा जी
सादर वंदे मातरम् !
…उसने क्यों कहा था घर जल्दी आना
शाम को घूमने चलेंगे
वह न कहती तो शायद वह अगली ट्रेन से आता
उसने क्यों न पहने मंगल के कुसुम बालो में
उसने क्यों नही फ़ोन उठाया उस दिन
क्यों वह रूठ गई छोटी सी बात पर ?
अभी लाश लेने जाना है
जाने कौन सा हाथ टूटा होगा
जिससे उसने पहली बार घूंघट खोला था
या फिर पैर जिससे उसने घूमे थे उसके साथ सात फेरे
साबुत होगा क्या उसका सर
जिसमे रहती थी सारी चिंताए प्यार और फ़िक्र
क्या पूरी होंगी वो आँखे
देख पाएगी अपनी छवि अंतिम बार उन आँखों में …
आतंक भोगने वालों की व्यथा को मार्मिक अभिव्यक्ति देने का आपका अंदाज़ अछूता है … लेकिन आतंक और दहशतगर्दी निस्संदेह शिकार होने वालों के पूरे परिवार पर वज्रपात करती है , केवल औरत का दुःख नहीं है आतंकी वारदातें !
मैंने भी लिखा है -
अल्लाहो-अकबर कहें ख़ूं से रंग कर हाथ !
नहीं दरिंदों से जुदा उन-उनकी औक़ात !!
दाढ़ी-बुर्के में छुपे ये मुज़रिम-गद्दार !
फोड़ रहे बम , बेचते अस्लहा-औ’-हथियार !!
मा’सूमों को ये करें बेवा और यतीम !
ना इनकी सलमा बहन , ना ही भाई सलीम !!
इनके मां बेटी बहन नहीं , न घर-परिवार !
वतन न मज़हब ; हर कहीं ये साबित ग़द्दार !!
शस्वरं
पर आ’कर पढ़ने और अपने बहुमूल्य विचार रखने के लिए निवेदन है …
एक आवश्यक विषय पर उत्कृष्ट लेखन द्वारा समाजहित में भावाभिव्यक्ति के लिए आभार ! हार्दिक मंगलकामनाएं- शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
गहन अभिव्यक्ति .संवेदनशीलता की पराकाष्ठा शायद नराधमो पर कुछ असर छोड़ जाए . आभार
एक गहनतर अभिव्यक्ति जिसे सिरफिरे कभी नहीं समझ पाएंगे. संवेदनाओं की इस महीन बुनावट ने
मेरे अंतस को झकझोर दिया है. बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयां.
आप तो बहुत अच्छा लिखती हैं..बधाई !
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'पाखी की दुनिया' में भी घूमने आइयेगा.
बहुत मार्मिक ... दिल भर आया.गोली वाले-बम वाले सत्ता के भूखे होते हैं.. सत्ता के चमचे होते हैं...वे ज़िंदगी की भाषा नही जानते.
ह्रदय को झकझोरती रचना.
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