शब्दों के जादूगर ने रचाया ऐसा तिलिस्म
कि
हो गया सब काया कल्प
पेड़ पौधे हो गए छू मंतर
दिन घंटे युग बह गए नदी बन कर
बहने लगे साथ ही प्रतिबद्धताओं के तिनके
धूएं के बादल बन गए वचन
और निष्कर्ष के मसौदे की चिन्दियाँ फंस गई चक्रवात में
औरत का दिल कबूतर बन कर
मापने लगा आसमान
आसमान जो कभी भी समंदर कि देह धारण कर सकता था
तब
वह बात जो शब्दों में नही कही जा सकती थी
चुपचाप जा बैठी सन्नाटे की कोख में
उस आकार की प्रतीक्षा में
जो
इस काया कल्प की परिधि से परे हो
शाश्वत हो !
इस खतरनाक जादुई माहौल में वह अपने प्यार का इज़हार कैसे करती ?
- लीना मल्होत्रा.
22 comments:
विश्वास के हाथ की
पाँचो उंगलियाँ पञ्चगव्य हैं
वंचना की दोहरी दृष्टि
जिव्ह्या है तक्षक की-
स्नेह में-
जो भी परीक्षित हो
अपने को पावन करे
विष से –
नहीं तो मरे |
धूएं के बादल बन गए वचन
और निष्कर्ष के मसौदे की चिन्दियाँ फंस गई चक्रवात में
औरत का दिल कबूतर बन कर
मापने लगा आसमान
आसमान जो कभी भी समंदर कि देह धारण कर सकता था
आप लिखें..खूब लिखें...बहुत अच्छा लिखती हैं आप..ढेर सारी बधाईयां और शुभकामनाएं...
हवा सनसनाती हुई बहती रही ...
देह में रिसते हुए दुःख को छू कर,
कहीं किसी खुशबू की याद निशब्द...
सोखती रही मन की गुहाओं से
पीड़ा की अनुगूंज...
पूरे आकाश में एक ही पक्षी की बोली
मेरे होने को देती रही विराटता का आधार...
कहती रही हवा, खुशबू, पाखी की आवाज...
वह बात जो शब्दों में नहीं कही जा सकती थी...
इंसानी भावनाओं ....और उनका मर्म इन्सान कई बार आपनी मोजुदगी को या तो शाश्वत होने देता है या सिमित परिधि की निष्ठाओं में बंधा होता है वही उस पल में आकर अपनी जिब्वाहा को सिल देता है पर इस चक्रव्यू ...को भावनाएं तोड़ देती है ...और शब्दों का बांध टूट पड़ता है .....जादू बिखरने लगता है .....अब वो मोन या आखों से भी हो सकता है .......कोमल अहसासों से भरी सुंदर शाब्दिक अभिव्यक्ति जी !!!!!!!!!!!!!!!!Nirmal Paneri
अच्छी कविता. शिल्प आकर्षक और कथ्य प्राणवान..
बहुत हे सुंदर अभिव्यक्ति, सुंदर शब्द चयन,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
sunder rachna. abhivyakti me jaadu hai. bohat sunder.
बहुत बढिया।
आभार
khoobsurat post, badhayi.
सन्नाटे की कोख से निकले शब्दों में भाव गहरे हैं.
stree purush ke jaadu me fans hee jaati hai... yah uske jeevan ka shaashvat katu satya hai. ek sundar abhivyakti ke liye badhai.
कई नम निवेदन इस तड़क भड़क में सकुचाये रहते हैं। बड़ी सुन्दर कविता।
I am amazed...........perhaps after many years met a poetess who could express in such a transparent powerful way.
Regards and thanks
Vinay
शब्द खड़े सकुचाते रह गये, संकेतोँ ने क्या कह डाला।
@ANJU पुरुष मन स्वान सम है री सखी! चल, छल करेँ! दुत्कार देँ, पुच्कार देँ . . . . देखो तो कैसे मुह उठाये पूँछ कंपित कर है आतुर।
असल बात शायद शब्दों में कही ही नहीं जा सकती
एक अच्छी अभिव्यक्ति/
तब वह बात जो शब्दों में नही कही जा सकती थीचुपचाप जा बैठी सन्नाटे की कोख में उस आकार की प्रतीक्षा मेंजो इस काया कल्प की परिधि से परे होशाश्वत हो !
बहुत अच्छा लिखती हैं आप.....शुभकामनाएं
बहुत बहुत खूबसूरत अंदाज़ और कविता
मान को आराम सा मिला पढ़ कर
anil parashar
लीना जी ,
बहुत अच्छी रचनाये कर रही हैं आप.साधुबाद.
तब
वह बात जो शब्दों में नही कही जा सकती थी
चुपचाप जा बैठी सन्नाटे की कोख में
उस आकार की प्रतीक्षा में
जो
इस काया कल्प की परिधि से परे हो
शाश्वत हो !
इस खतरनाक जादुई माहौल में वह अपने प्यार का इज़हार कैसे करती ?
सच ही है प्यार के इज़हार के लिए भी तो सही माहौल चाहिए.
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