अभी अभी जिस आग से उतरी है दाल
उसी आग पर चढ़ गई है रोटी जवान होकर पकने के लिए
दोनों प्रतीक्षा करते है
थाली का...
कटोरी का...
और कुछ क्षण के सानिध्य का
रोटी मोहब्बत में
टुकड़ा टुकड़ा टूट कर
समर्पित होती है ...
डूबती है दाल में
और गले मिल कर
डूब जाते हैं दोनों साथ साथ मौत के अंधे काल में
अजब इश्क है दोनों का...
-लीना मल्होत्रा
-लीना मल्होत्रा
9 comments:
बहुत भावपूर्ण रचना |
मेरे ब्लॉग में आपका सादर आमंत्रण है |
http://pradip13m.blogspot.com/
आये और अच्छा लगे तो जरुर फोलो करें |
धन्यवाद् |
bhavnaon ko vyakt kar, ek roop, ek astitv deti kavita hai.. lekin ishq me doob kar, daal roti jab milte hain, to grahan karne vale ke liye jeevan ka srijan karte hain. man ko chhoo jaati uttam kavita.
ak pravaushali kabita
achhi hai!!!
bada najuk aur samarpan ka nata hai daal roti ka,,,,. bahut achha m,,..
प्रेम में एक दुसरे केलिए मरना महत्वपूर्ण नहीं है, वरन एक दुसरे को समझना और फिर समझाना ज्यादा महत्वपूर्ण है/ जो ये त्याग समझ गया वो प्रेम जीत गया/
वैसे लीना जी की कविताएँ सत्य बयाँ करती हैं...शायद इसलिए घटना को साक्षर कर देती हैं/
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
दाल रोती के माध्यम से इश्क को बयान करना ..वाह!!
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