Friday 17 June 2011

एक चित्र एक याद.

"दुनिया इन दिनों" भोपाल से छपने वाली पत्रिका , अगस्त २०११ में यह कविता छपी है.

दो पटरियों  के बीच रास्ता  भूली  एक  बकरी..
कुएँ कि मुन्डेर पर पडी एक परित्य्क्ता  बाल्टी..
आधे वस्त्र पहनी घुटनो तक पानी मे डूबी
खेत मे वह्शाना तरीके से  काम करती एक किसान स्त्री..
बिना किसी राह्गीर अपनी छाया मे सुस्ताता एक घना आलसी  पेड..   
पतले मांस के वस्त्र पहना पोखर  मे भैँस के साथ नहाता
एक कंकालनुमा बच्चा..
नदी की सत्ता को पाटता एक  अहंकारी पुल..
बहाव की   प्रतीक्षा मे पुल के नीचे थम चुकी  एक सूखी  बेवा नदी..
अपनी अपनी ज़िंदगी की गठरी समेटे 
निरूद्देश्य भागते सब दृष्य ...

सामने की सीट पर 
मोहब्बत की पटकी खाने को बिलकुल तैयार बैठी  
किताब के हर्फों से  अपने ख्वाब  बीनती  एक लड़की..
म्युजिक के इयरफोन कानो मे ठूंस भविष्य की  ताल पर टिकी असुरक्षा को अनसुना करता
लगातार पैर हिलाता एक बेपरवाह लडका .. 
९ नग  पुनह पुनह गिनती रखती और अपनी दृष्टि से सबके चरित्रों को तौलती एक मारवाड़ी औरत ..
अपनी अचीन्ही जिन्दगी परान्ठे  मे लपेट अचार के साथ सटकता  एक बाबुनुमा अधेड़ आदमी..
इन सब बेनामी चेहरो और ध्वनियों  के अस्तित्व को नकारती ट्रेन की चीखती आवाज़..
और खामोशी मे डूबी  मैं....

कट ही जाता यह सफर इतनी अजनबी ज़िंदगी मे
अगर  
ऐसे में
आत्महत्या कर चुके अतीत से छिटका हुआ एक जिंदा लम्हा
मेरी झोली में न गिरता
और मेरे कान मे न  कह्ता कि मै अकेली नही हूँ...

उस एक लम्हे की ऊँगली थामे
मैं चल पड़ी हूँ 
आग  कि लप्टो  वाली  सुर्ख पाखण्डी गलियो में 
जहाँ
कयामत के बाद भी अन्गारो मे आंच बची थी

गाडी एक गुमशुदा स्टेशन पर रुकी है
समय की धक्कामुक्की को ठेलते और मृतभक्षी घृणा के पक्षियों को सुदूर आसमान में उड़ाकर
अपने पूरे वजूद के साथ्
आ बैठे   हो तुम मेरे पहलू में
और मै मुस्कुरा कर
ले चली हूँ तुम्हे  अपने साथ अपनी यात्रा पर
बिना टिकट !

-लीना मल्होत्रा
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14 comments:

मनोज पटेल said...

अनोखा शब्द-चित्र...

Unknown said...

कवितायेँ किस हद तक बाँध सकती है ,ये जानना हो तो लीना को पढ़े ,हम भी सफर में साथ निकल पड़े हैं |एक बिम्ब पर आपत्ति है खेत मे महिला किसान वहशियाना ढंग से काम नहीं करती,वो अपने खेतों को उतना ही प्यार करती हैं जितना आप अपनी कविता को |

anju said...

ek akeli aurat, behad akeli yaad ko saath liye chalti rahi jeevan bhar. bina ticket bina kisi ke naam ke.. behad komal ahsaas.

Vandana Ramasingh said...

एक एक बिम्ब ठहर कर सोचने को मजबूर करता है और एक नहीं अनेक यात्री चल पड़े हैं बिना टिकट आपके साथ

नवनीत पाण्डे said...

kuchh bimb vakai lazawab hain

डिम्पल मल्होत्रा said...

beautiful picture composition :)

prithvi said...

आपकी कवितायों में नयापन, गंभीरता है और बिम्ब भी नये हैं. चयन में सावधानी की मांग उठ रही है . लिखती रहें .. सादर

anita said...

good

Vipul said...

chitron saamne dikhte hai.. khaamosh ladki baat karti jaan padti hai. thandi hawa ka jhoka hai ye chalti train ka chitr. tumhaari yaatra anokhi hai. yadon ko samete ek khoobsoorat or gambheer shabd chitr. bohat achha likhti hain leena..

स्वप्निल तिवारी said...

कविता एक लंबे सफर पर निकली है...शुरुवात में जितने भी बिम्ब गढे गए हैं...वो सब अपने आप में पूरी कहानी हैं... उनके अलावा एक याद में जिस तरह सारी बातें पिरो डी गयी हैं वह अद्भुत है...

सादर

ssood said...
This comment has been removed by the author.
ssood said...

Wish u a wonderful and an adventurous poetic journey ahead... without ticket!

leenamalhotra rao said...

aap sabhi mitro ka aabhaar.

Nidhi said...

हम सभी की ज़िंदगी में रोज देखे जाने वाले दृश्यों का बारीकी से अध्ययन एवं सुन्दर विवेचन