Monday, 30 May 2011

तुम्हारे प्रेम में गणित था

वह  जो प्रेम था 
शतरंज की बिसात की तरह बिछा हुआ हमारे बीच.
तुमने चले दांव पेच  
और मैंने बस ये
कि इस खेल में उलझे रहो तुम मेरे साथ.

तुम्हारे प्रेम में गणित था 
कितनी देर और...?
मेरे गणित में प्रेम था
बस एक और.. दो और...


वह  जो  पहाड़  था 
हमारे बीच
मैंने सोचा
वह एक मौका था 
तय कर सकते थे हम उसकी ऊँचाइयां 
साथ साथ हाथ थाम कर
एक निर्णय था हमें साथ बाँधने का
तुम्हे लगा वह अवरोध है मात्र 
और उसको उखाड़ फेकना ही एकमात्र विकल्प था
और
एक नपुंसक युग  ख़त्म हो गया उसे हटाने  में 
हाथ बिना हरकत बर्फ बन गए चुपचाप 

वह जो दर्द था हमारे बीच,
रेल की पटरियों की तरह जुदा रहने का
मैंने माना उसे
मोक्ष  का  द्वार जहाँ अलिप्त होने की पूरी सम्भावनाये मौजूद थी. 
और तुमने
एक समानान्तर जीवन
बस एक दूरी भोगने  और जानने के बीच
जिसके पटे बिना संभव न था प्रेम

वह जो देह का  व्यापार था हमारे बीच 
मैंने माना 
वह एक उड़नखटोला था
जादू था
जो तुम्हे मुझ तक और मुझे तुम तक पहुंचा सकता था 
तुमने माना लेन-देन
देह एक औज़ार
उस औजार से तराशी हुई एक व्यभिचारी भयंकर मादा
 जो
शराबी की तरह  धुत हो जाए और
अगली सुबह उसे कुछ याद न रहे
या फिर एक दोमट मिटटी जो मात्र उपकरण हो एक नई फसल उगाने का  .


शायद तुम्हारा प्रेम दैहिक  प्रेम था
जो देह के साथ इस जन्म में ख़त्म हो जाएगा
और मेरा एक कल्पना
जो अपने डैने फैलाकर अँधेरी गुफा में मापता रहेगा  अज्ञात आकाश,
और नींद में बढेगा अन्तरिक्ष तक
 मस्तिष्क की स्मृति में अक्षुण रहेगा मृत्यु  के बाद भी
और सूक्ष्म शरीर ढो कर ले जाएगा उसे कई जन्मो तक..
मैंने शायद तुमसे सपने में प्रेम किया था
अगले जन्म में..
मै तुमसे फिर मिलूंगी
किसी खेल में
या व्यापार में
तब होगा प्रेम का हिसाब..
मै गणित सीख लूंगी तब तक..
-लीना मल्होत्रा