मै एक पारदर्शी अँधेरा हूँ
इंतज़ार कर रहा हूँ अपनी बारी का
रात होते ही उतरूंगा तुम्हारे कंधो पर
तुम्हारे बालो के वलय की घुप्प सुरंगे रार करती हैं मुझसे
तुम एक ही बाली क्यों पहनती हो प्रिये
आमंत्रण देती है मुझे ये
एक झूला झूल लेने का
और यह पिरामिड जहाँ से
समय भी गुज़रते हुए अपनी चाल धीमी कर लेता है
हवाओ को अनुशासित करते हैं
और हवाए एक संगीत की तरह आती जाती रहती हैं
जिसमे एक शरद ऋतु चुपचाप पिघल के बहती रहती है.
तुम्हारी थकी मुंदती आँखों में तुम्हारे ठीक सोने से पहले
मै चमकते हुए सपने रख देता हूँ
और अपनी सारी सघनता झटककर पारदर्शी बन जाता हूँ
ताकि मेरी सघनता तुम्हारे सपनो में व्यवधान न प्रस्तुत कर दे.
क्या तुमने सोते हुए खुद को कभी देखा है ?
निश्चिन्त ..अँधेरे को समर्पित,
असहाय ..पस्त ..नींद के आगोश में गुम
सपने भी वही देखती हो जो मै तुम्हे परोसता हूँ
और तुम्हारी देह के वाद्यों से निकली अनुगूंज को नापते हुए मेरी रात गुज़र जाती है
और मै तुम्हारा ही एक उपनिवेश बनकर गर्क हो जाना चाहता हूँ तुम्हारे पलंग के नीचे
.
तुम्हे उठना है सूरज के स्वागत के लिए तरो ताज़ा
भागती रहोगी तुम शापित हाय
सूरज के पीछे
और मै सजाता रहूँगा पूरा दिन वो सपने जो दे सकें तुम्हे ऊर्जा
देखा कितना सार्थक है मेरा होना तुम्हारे और सूरज के बीच में धरा
क्या तुम मुझे पहचानती हो
मै हर बार उतरा हूँ तुम्हारे क़दमों में और पी गया हूँ तुम्हारी सारी थकान
और अनंतकाल से मै सोया नहीं हूँ.
जबकि तुम अनंतकाल से भाग रही हो सूरज के पीछे
और तब जब भूल जाती हो मुझे एक स्वप्न की तरह
मै लैम्पपोस्ट के नीचे खड़ा होकर प्रतीक्षा करता हूँ तुम्हारी
प्यार करता हूँ बिना शर्तो के.
-लीना मल्होत्रा.