पति
एक दिन
तुम्हारा ही अनुगमन करते हुए
मैं उन घटाटोप अँधेरे रास्तों पर भटक गई
निष्ठा के गहरे गह्वर में छिपे आकर्षण के सांप ने मुझे भी डस लिया था
उसके विष का गुणधर्म वैसा ही था
जो पति पत्नी के बीच विरक्ति पैदा कर दे
इतनी
कि दोनों एक दूसरे के मरने की कामना करने लगें.
तभी जान पाई मैं कि क्या अर्थ होता है ज़ायका बदल लेने का
और विवाह के बाद के प्रेम में कितना सुख छिपा होता है
और तुम क्यों और कहाँ चले जाते हो बार बार मुझे छोड़कर ..
और तुम क्यों और कहाँ चले जाते हो बार बार मुझे छोड़कर ..
मैं तुम्हारे बच्चो की माँ थी
कुल बढ़ाने वाली बेल
और अर्धांगिनी
और अर्धांगिनी
तुम लौट आये भीगे नैनों से हाथ जोड़ खड़े रहे द्वार
तुम जानते थे तुम्हारा लौटना मेरे लिए वरदान होगा
और मैं इसी की प्रतीक्षा में खड़ी मिलूंगी
तुम जानते थे तुम्हारा लौटना मेरे लिए वरदान होगा
और मैं इसी की प्रतीक्षा में खड़ी मिलूंगी
मेरे और तुम्हारे बीच
फन फैलाये खड़ा था कालिया नाग
और इस बार
मैं चख चुकी थी स्वाद उसके विष का
यह जानने के बाद
तुम
थे पशु ...
मै वैश्या दुराचारिणी ..
ओ प्रेमी!
भटकते हुए जब मैं पहुंची तुम्हारे द्वार
तुमने फेंका फंदा
वृन्दावन की संकरी गलियों के मोहपाश का
जिनकी आत्मीयता में खोकर
मैंने सपनो के निधिवन को बस जाने दिया था घर की देहरी के बाहर
राधा !
राधा ही हो तुम..
और
प्रेम पाप नही..
जब जब
पति से प्रेमी बनता है पुरुष
पाप पुण्य की परिभाषा बदल जाती है
-लीना मल्होत्रा
ओ प्रेमी!
भटकते हुए जब मैं पहुंची तुम्हारे द्वार
तुमने फेंका फंदा
वृन्दावन की संकरी गलियों के मोहपाश का
जिनकी आत्मीयता में खोकर
मैंने सपनो के निधिवन को बस जाने दिया था घर की देहरी के बाहर
गर्वीली नई धरती पर प्यार की फसलों का वैभव फूट रहा था
तुमने कहाराधा !
राधा ही हो तुम..
और
प्रेम पाप नही..
जब जब
पति से प्रेमी बनता है पुरुष
पाप पुण्य की परिभाषा बदल जाती है
देह आत्मा
और
स्त्री
वैश्या से राधा बन जाती है..
-लीना मल्होत्रा